प्रस्तावना
किसी कविता के लिये पहली शर्त भले उसका कविता होना हो, लेकिन मंचीय-कविता के माध्यम से विकसित कविता के बाज़ार में भी यही शर्त लागू हो, ऐसा नहीं है. एक अनुमान के अनुसार देश भर में बारह सौ मंचीय कवियों की फ़ौज और डेढ़ सौ करोड़ की इस ‘कवि-सम्मेलन इंडस्ट्री’ में जमे रहने के लिए अब कविता की समझ, संवेदना और हुनर बिलकुल नहीं चाहिए. अगर कुछ चाहिए तो जोड़-तोड़, ख़ेमेबाज़ी और ओढ़े गए आत्मविश्वास के साथ बला की नौटंकी. इधर देश भर में एक बड़ा वर्ग है जिसके लिये कविता का अर्थ मंच की कविता ही है. इस वर्ग की नज़र में अशोक चक्रधर सुरेंद्र शर्मा सरीखे रचनाकार और सबसे बड़े कवि हैं. यह भोला वर्ग उन गजानन माधव मुक्तिबोध को नहीं जानता, जिनकी कविताओं पर अशोक चक्रधर ने डॉक्टरेट की उपाधि पाई है! अशोक चक्रधर हिंदी के जाने-माने कवि और लेखक हैं. साहित्य की दुनिया में इन्होंने हास्य-व्यंग्यात्मक रचनाओं के जरिए अपनी अलग पहचान बनाई है. बस यूं समझ लीजिए कि जिंदगी के हर मोड़ पर उठते तनावपूर्ण सवालों के मुस्कुराते जवाब हैं अशोक चक्रधर! डॉ॰ अशोक चक्रधर' ८ फ़रवरी सन् १९५१) हिंदी के विद्वान, कवि एवं लेखक है।[हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट प्रतिभा के कारण प्रसिद्ध वे कविता की वाचिक परंपरा का विकास करने वाले प्रमुख विद्वानों में से भी एक है। टेलीफ़िल्म लेखक-निर्देशक, वृत्तचित्र लेखक निर्देशक, धारावाहिक लेखक, निर्देशक, अभिनेता, नाटककर्मी, कलाकार तथा मीडिया कर्मी के रूप में निरंतर कार्यरत अशोक चक्रधर जामिया मिलिया इस्लामिया में हिंदी व पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर के पद से सेवा निवृत्त होने के बाद संप्रति केन्द्रीय हिंदी तथा हिन्दी अकादमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं। 2014 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
जीवन परिचय-
अशोक चक्रधर जी अशोक चक्रधर जी का जन्म ८ फ़रवरी, सन १९५१ में खु्र्जा (उत्तर प्रदेश) के अहीरपाड़ा मौहल्ले में हुआ। उनके पिताजी डॉ॰ राधेश्याम 'प्रगल्भ' अध्यापक, कवि, बाल साहित्यकार और संपादक थे।[5] उन्होंने 'बालमेला' पत्रिका का संपादन भी किया। उनकी माता कुसुम प्रगल्भ गृहणी थीं। बचपन से ही विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने में उनकी रुचि थी। बचपन से ही उन्हें अपने कवि पिता का साहित्यिक मार्गदर्शन मिला और उनके कवि-मित्रों की गोष्ठियों के माध्यम से उन्हें कविता लेखन की अनौपचारिक शिक्षा मिली। सन १९६० में उन्होंने रक्षामंत्री 'कृष्णा मेनन' को अपनी पहली कविता सुनाई।
सन १९६२ में सोहन लाल द्विवेदी की अध्यक्षता में अपने पिता द्वारा आयोजित एक कवि सम्मेलन अशोक चक्रधर ने अपने मंचीय जीवन की पहली कविता पढ़कर पं.सोहनलाल द्विवेदी जी का आशीर्वाद प्राप्त किया। साहित्यिक अभिरुचि के साथ-साथ अपनी पढ़ाई के प्रति भी अशोक चक्रधर काफ़ी सतर्क रहे। सन् १९७० में उन्होंने बी. ए. प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण किया। 1968 में वे मथुरा में आकाशवाणी केन्द्र में ऑडिशंड आर्टिस्ट के रूप में चुने गए। 1972 में उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में एम. लिट्. में प्रवेश लिया। इसी बीच 1972 में उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज में प्रध्यापक पद पर नियुक्त मिल गई। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में इन दिनों अनेक गुणात्मक परिवर्तन हुए। उनकी पहली पुस्तक मैकमिलन से 'मुक्तिबोध की काव्य प्रक्रिया' 1975 में प्रकाशित हुई। जोधपुर विश्वविद्यालय ने इस पुस्तक को युवा लेखन द्वारा लिखी गई वर्ष की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का पुरस्कार दिया। 1975 में उन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्राध्यापक के पद पर कार्य प्रारंभ किया, जहाँ वे २००८ तक कार्यरत रहे। उन्होंने प्रौढ़ एवं नवसाक्षरों के लिए विपुल लेखन, नाटक, अनुवाद, कई चर्चित धारावाहिकों, वृत्त चित्रों का लेखन निर्देशन करने के अलावा कंप्यूटर में हिंदी के प्रयोग को लेकर भी महत्वपूर्ण काम किया है।
वे जननाट्य मंच के संस्थापक सदस्य भी हैं। इनका नाटक बंदरिया चली ससुराल नाटक का नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा द्वारा मंचन हो चुका है। इसके निर्देशक श्री राकेश शर्मा तथा रंगमंडल, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय है। और श्री रंजीत कपूर के नाटक 'आदर्श हिन्दू होटल' एवं 'शॉर्टकट' के लिए गीत लेखन भी इन्होंने किया। अशोक चक्रधर ने हिन्दी के विकास में कम्प्यूटर की भूमिका विषयक शताधिक पावर-पाइंट प्रस्तुतियां की हैं और ये हिन्दी सलाहकार समिति, ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार तथा हिमाचल कला संस्कृति और भाषा अकादमी, हिमाचल प्रदेश सरकार, शिमला के भूतपूर्व सदस्य रह चुके है। वे साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक उद्देश्यों के लिए विश्व भ्रमण करते रहे हैं।
प्रकाशित कृतियाँ-
कविता संग्रह- बूढ़े बच्चे, सो तो है, भोले भाले, तमाशा, चुटपुटकुले, हंसो और मर जाओ, देश धन्या पंच कन्या, ए जी सुनिए, इसलिये बौड़म जी इसलिये, खिड़कियाँ, बोल-गप्पे, जाने क्या टपके, चुनी चुनाई, सोची समझी, जो करे सो जोकर, मसलाराम!
फिल्म एवं दूरदर्शन-
महत्त्वपूर्ण दूरदर्शन कार्यक्रम- नई सुबह की ओर, रेनबो फैण्टेसी, कृति में चमत्कृत, हिन्दी धागा प्रेम का, अपना उत्सव, भारत महोत्सव।
अभिनय- अशोक चक्रधर ने डीडी-1 के धारावाहिक बोल बसंतो तथा सोनी एंटरटेनमेंट चैनल (भारत) के धारावाहिक छोटी सी आशा में अभिनय किया है।
फिल्म निर्माण-
जीत गई छन्नो, मास्टर दीपचंद (प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय, भारत सरकार), झूमे बाला झूमे बाली (दिल्ली दूरदर्शन केन्द्र), गुलाबड़ी (दिल्ली महानिदेशालय), हाय मुसद्दी, तीन नजारे (ई टी एंड टी, भारत सरकार) बिटिया (एन एफ डी सी, भारत सरकार)
वृत्तचित्र / लेखन-निर्देशन-
विकास की लकीरे (सैण्डिट, नई दिल्ली), पंगु गिरि लंघै, गोरा हट जा (फ़िल्म्स डिवीज़न, भारत सरकार), हर बच्चा हो कक्षा पाँच (दूरदर्शन निदेशालय, भारत सरकार), इस ओर है छतेरा (जामिया मिलिया इस्लामिया)।
धारावाहिक लेखन / प्रस्तुति-
कहकहे, पर्दा उठता है (दिल्ली दूरदर्शन केन्द्र), वंश (आर.के. फ़िल्म्स, मुम्बई), अलबेला सुरमेला, फुलझड़ी ऐक्सप्रैस (सी. पी. सी. दूरदर्शन केन्द्र, नई दिल्ली), बात इसलिये बताई (एन. डी. टी. वी), पोल टॉप टैन, न्यूजी काउंट डाउन (ज़ी इंडिया), चुनाव चालीसा (सहारा समय), वाह वाह (सब टीवी), चुनाव चकल्लस, बजय व्यंग्य (सहारा राष्ट्रीय), चले आओ चक्रधर चमन में (दूरदर्शन)।
वृत्तचित्र लेखन-
बहू भी बेटी होती है (फ़िल्म्स डिवीज़न, भारत सरकार), जंगल की लय ताल, साड़ियों में लिपटी सदियाँ, साथ-साथ चलें, ये है चारा, ग्रामोदय, ज्ञान का उजाला, वत्सी नाव, रयूमेटिक हृदय होग, घैंघा पाडुराना, एड्रमौंटी टापू, छोटा नागपुर जल और थल, लोकोत्सव, नगर विकास (सैण्डिट, नई दिल्ली)।
पुरस्कार और सम्मान-
मुक्तिबोध की काव्यप्रक्रिया - वर्ष की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक (किसी युवा लेखक द्वारा रचित), जोधपुर वि.वि., राजस्थान, 'ठिठोली पुरस्कार', दिल्ली, 'हास्य-रत्न' उपाधि 'काका हाथरसी हास्य पुरस्कार', आकाशवाणी पुरस्कार 'प्रौढ़ बच्चे' सर्वश्रेष्ठ आकाशवाणी रूपक लेखन-निर्देशन पुरस्कार, दिल्ली, 'टी.ओ.वाई.पी. अवार्ड', (टैन आउटस्टैंडिंग यंग परसन ऑफ इंडिया), जेसीज़ क्लब, बम्बई, 'समाज रत्न' उपाधि साथी संगठन, दिल्ली, 'पं.जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय एकता अवार्ड', गीतांजलि, लखनऊ, 'मनहर पुरस्कार', साहित्य कला मंच, बम्बई, धारावाहिक 'ढाई आखर' लेखन-निर्देशन के लिए भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह द्वारा सम्मानित, 'बाल साहित्य पुरस्कार', हिन्दी अकादमी, दिल्ली, 'पंगु गिरि लंघै' सर्वश्रेष्ठ विकलांग आधारित फ़िल्म, लेखन-निर्देशन-निर्माण, राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव, भारत सरकार, 'कैरियर अवार्ड', विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली, 'आल राउण्ड पर्सनैलिटी', दिल्ली, 'आउटस्टैंडिंग परसन अवार्ड' रोटरी क्लब, दिल्ली, 'टेपा पुरस्कार', उज्जैन, 'राष्ट्रीय सद्भाव कवि' सम्मान, जागृति मंच, दिल्ली, 'राष्ट्रभाषा समृद्धि सम्मान', साई दास कला अकादमी, दिल्ली, 'कीर्तिमान पुरस्कार', मैहर, 'ये हैं ब्रज के गौरव' सम्मान, मथुरा, राष्ट्रपति डॉ॰ शंकरदयाल शर्मा द्वारा राष्ट्रपति भवन में काव्य पाठ के लिए सम्मानित, 'रोज़ अवार्ड' रोज़ फाइन आर्ट्स क्लब, दिल्ली, 'काका हाथरसी सम्मान', हिन्दी अकादमी, दिल्ली, 'हिन्दी उर्दू साहित्य अवार्ड', लखनऊ, राज्यपाल, उ.प्र. द्वारा सम्मानित, 'दिल्ली के गौरव' सम्मान, दिल्ली सरकार,'राष्ट्रीय पर्यावरण सेवा सम्मान', षष्ठम् विश्व पर्यावरण महासम्मेलन, दिल्ली, 'सुमन सम्मान', भारती परिषद एवं निराला शिक्षा निधि उन्नाव, उत्तर प्रदेश, 'सद्भावना पुरस्कार', आल इंडिया ज्ञानी ज़ैल सिंह मैमोरियल सोसाइटी, दिल्ली, भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ॰ शंकरदयाल शर्मा द्वारा प्रदत्त, 'चौपाल सम्मान', मद्रास, 'काव्य-गौरव पुरस्कार', सागर, मध्य प्रदेश, 'डॉ॰ मंशाउर्रहमान मंशा सम्मान', नागपुर, 'राजभाषा सम्मान', भारतीय स्टेट बैंक, प्रधान कार्यालय, भोपाल (म.प्र.) इत्यादि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित!
दिल्ली सरकार की हिंदी अकादमी ने हिंदी दिवस (14 सितंबर, 2016) को आयोजित एक समारोह में बालेन्दु शर्मा दाधीच को भाषा दूत सम्मान से अलंकृत किया। डिजिटल माध्यमों से हिंदी के विकास में योगदान देने वालों को मान्यता देने के लिए यह सम्मान पहली बार शुरू किया गया है। पूर्व संपादक और तकनीकविद् श्री दाधीच माइक्रोसॉफ्ट इंडिया में स्थानीयकरण प्रमुख (लोकलाइजेशन लीड) के रूप में कार्यरत हैं। उन्हें सम्मान स्वरूप प्रतीक चिह्न, प्रमाण पत्र और शॉल प्रदान किया गया।
अपने तुलसी बाबा रामचरितमानस में लिख गए हैं कि-
सुनहि बिनय मम बिटप आसोका।
सत्य नाम करु हरु मम सोका।।
अपने नाम को सत्य करते हुए, अपने अशोक चक्रधरजी भी संसार का शोक हरने में लगे हैं। उनकी एक बात याद आ रही है, आपको सुनाते हैं। जब अमेरिका नें ईराक पर हमला किया तो हमारे मोबाइल पर भारत की गुटनिर्पेक्षता का प्रदर्शन करता हुआ यह संदेसा आया,
"सद्दाम मरे या बुश, हम दोनों में खुश।" एक कवि सम्मेलन में अशोक जी को सुना तो वे बोले कि आज कल यह संदेश बहुत प्रसारित हो रहा है, पर इसमें एक त्रुटि है, सही बात कुछ ऐसी होनी चाहिए!
"सद्दाम मरे ना बुश, हो दोनो पर अंकुश।"
अंकुश ज़रूरी है, और यह अंकुश प्रेम का भी हो सकता है। आवश्यक नहीं है कि अंकुश हाथी की पीठ पर चढ़कर ही लगाया जाए। यही भारत की संस्कृति है, जो हम संसार तक पहुँचा सकते हैं।