Monday 5 December 2016

गोपालदास नीरज : 5 पैसे से 5 लाख तक

प्रस्तावना
देश के ख्यात गीतकार और कवि गोपालदास नीरज को पिछले दिनों जब मुलायम सिंह द्वारा उत्तरप्रदेश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान 'भारत भारती' लेते देखा और यह भी देखा कि प्रदेश सरकार ने उन्हें ताम्रपत्र के साथ 5 लाख रुपए की सम्मान निधि भेंट की तो दिल के किसी कोने में सुकून की अनुभूति हुई। नीरज उन कवियों में शुमार किए जाते हैं, जो आज भी अकेले के बूते पर किसी कवि सम्मेलन का मंच संभाल सकते हैं। काका हाथरसी के जमाने जब हास्य का पुट पूरे देश पर छाया हुआ था, तब नीरज की धीर गंभीर दौर दिल को स्पर्श कर लेने वाली कविताओं ने अपने श्रोता तैयार किए। नीरज जी से हिन्दी संसार अच्छी तरह परिचित है किन्तु फिर भी उनका काव्यात्मक व्यक्तित्व आज सबसे अधिक विवादास्पद है। जन समाज की दृष्टि में वह मानव प्रेम के अन्यतम गायक हैं। 'भदन्त आनन्द कौसल्यामन' के शब्दों में उनमें हिन्दी का ''अश्वघोष'' बनने की क्षमता है। दिनकर जी के कथनानुसार वह हिन्दी की वीणा है' अन्य भाषा भाषियों के विचार से वह 'सन्त कवि है' और कुछ आलोचकों के मत से वह 'निराश मृत्युवादी है'। वर्तमान समय में वह सर्वाधिक लोकप्रिय और लाडले कवि है इन्होंने अपनी मर्मस्पर्शी काव्यानुभूति तथा सहज सरल भाषा द्वारा हिन्दी कविता को एक नया मोड़ दिया है और बच्चन जी के बाद कवियों की नई पीढ़ी को सर्वाधिक प्रभावित किया। आज अनेक गीतकारों के कंठ में उन्हीं की अनुगूँज है।
 
संक्षिप्त जीवनी-
गोपालदास सक्सेना 'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, जिसे अब उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है, में इटावा जिले के पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना[1] के यहाँ हुआ था। मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये। 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डी०ए०वी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी०ए० और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया। मेरठ कॉलेज मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया किन्तु कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएँ न लेने व रोमांस करने के आरोप लगाये गये जिससे कुपित होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे। कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा। किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका जी बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये। तब से आज तक वहीं रहकर स्वतन्त्र रूप से मुक्ताकाशी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आज अट्ठासी वर्ष की आयु में भी वे देश विदेश के कवि-सम्मेलनों में उसी ठसक के साथ शरीक होते हैं। बीड़ी, शराब और शायरी उनके जीवन की अभिन्न सहचरी बन चुकी हैं।
अपने वारे में उनका यह शेर आज भी मुशायरों में फरमाइश के साथ सुना जाता है:
इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥
प्रमुख कविता संग्रह-
हिन्दी साहित्यकार के अनुसार नीरज की कालक्रमानुसार प्रकाशित कृतियाँ इस प्रकार हैं:
संघर्ष (1944), अन्तर्ध्वनि (1946), विभावरी (1948)प्राणगीत (1951), दर्द दिया है (1956)बादर बरस गयो (1957)मुक्तकी (1958)दो गीत (1958)नीरज की पाती (1958)गीत भी अगीत भी (1959)आसावरी (1963)नदी किनारे (1963)लहर पुकारे (1963)कारवाँ गुजर गया (1964)फिर दीप जलेगा (1970)तुम्हारे लिये(1972), नीरज की गीतिकाएँ (1987)
पुरस्कार एवं सम्मान-
नीरज जी को अब तक कई पुरस्कार व सम्मान[4] प्राप्त हो चुके हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है:
पुरस्कार एवं सम्मान :
(i) विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार | (ii) पद्म श्री सम्मान (1991), भारत सरकार | (iii) यश भारती एवं एक लाख रुपये का पुरस्कार (1994), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ | (iv) पद्म भूषण सम्मान (2007), भारत सरकार | उनके द्वारा लिखी गयी प्रमुख कविता संग्रह : (i) संघर्ष (1944) | (ii) अन्तर्ध्वनि (1946) | (iii) विभावरी (1948) | (iv) प्राणगीत (1951) | (v) दर्द दिया है (1956) | (vi) बादर बरस गयो (1957) | (vii) मुक्तकी (1958) | (viii) दो गीत (1958) | (ix) नीरज की पाती (1958) | (x) गीत भी अगीत भी (1959) | (xi) आसावरी (1963) | (xii) नदी किनारे (1963) | (xiii) लहर पुकारे (1963) | (xiv) कारवाँ गुजर गया (1964) | (xv) फिर दीप जलेगा (1970) | (xvi) तुम्हारे लिये (1972) |
फिल्म फेयर पुरस्कार
नीरज जी को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्नीस सौ सत्तर के दशक में लगातार तीन बार यह पुरस्कार दिया गया। उनके द्वारा लिखे गये! सुप्रसिद्ध गीतकार और कवि गोपालदास नीरज को मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 25 मार्च 2015 को प्रथम राष्ट्रीय कवि प्रदीप सम्मान से सम्मानित किया गया है | भोपाल में आयोजित समारोह में मध्यप्रदेश के संस्कृति राज्य मंत्री सुरेन्द्र पटवा ने नीरज को 2 लाख रुपये की सम्मान राशि, सम्मान पट्टिका और शॉल प्रदान किया | इस पुरस्कार की शुरुआत मध्य प्रदेश सरकार ने की | मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्थापित यह पहला राष्ट्रीय कवि प्रदीप सम्मान है | निर्णायक मण्डल ने गोपालदास नीरज को पहला राष्ट्रीय कवि प्रदीप सम्मान देने का फैसला किया!
पुररकृत गीत हैं-
1970: काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चन्दा और बिजली), 1971: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फ़िल्म: पहचान)1972: ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर)
मन्त्रीपद का विशेष दर्जा-
उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने अभी हाल सितम्बर में ही नीरजजी को भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मन्त्री का दर्जा दिया है। साहित्यकारों के पुरस्कार लौटाने पर नाराजगी जताते हुए मशहूर कवि गोपालदास 'नीरज' ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था। आगरा में नीरज ने कहा था- 'साहि‍त्‍यकार मोदी के खि‍लाफ राजनीति कर रहे हैं। इन सहित्‍यकारों को कांग्रेस के राज में पुरस्‍कार मिला था और अब वही इनसे ये पुरस्‍कार लौटाने का काम करवा रही है। इससे कांग्रेस की ही बदनामी हो रही है। इस बीच, मशहूर गीतकार प्रसून जोशी ने अवॉर्ड लौटाने वाले लेखकों पर कहा है कि इस तरह के विरोधों से देश में असहिष्णुता (इनटॉलरेंस) बढ़ रही है। उन्‍होंने अपने बयान में कह था- 'साहित्‍यिक पहचान के ऊपर पॉलिटिक्‍स होना दुखद है। इससे उन्‍हें पीड़ा होती है।'

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