Sunday 16 September 2012


पंचदेवस्तुतिः

समर्थश्री और संस्कृता  


ये मालिनी छंद की रचना है,,ये छंद नामानुरूप अत्यन्त मधुर है,,गेय है,,भावुक सहृदयों की प्रीति के लिये प्रयास करते हुए सदाशिव देवाधिदेव महादेव के पावन पादारविन्दों में कोटिशः प्रणति,,
ननमयययुतेयं मालिनीभोगिलोकैः

गणपति

गजवदनविशेषःज्ञानविज्ञानशेषः,

प्रमथगणनिधीशोदेवदेवःसुरेशः।
निरतिशयसुखाब्धौ मज्जने यो विरक्तः,
जयतिशुभदमूर्तिःविघ्नहर्ता गणेशः।।

शिव 

धवलविमलचन्द्रःशोभितो यस्यभाले,
भुजगरचितमाला कण्ठमध्ये विभाति।
पशुपतिपरमेशःसर्वमांगल्यमूर्तिः.
भुवनविभवदाता शंकरःशंकरोतु।।


सूर्य
गहनतिमिरहारी दिव्यनक्षत्रचारी,
जननमरणधारी सर्वदानंदकारी।
भवविभवविकारी भक्तदौर्भाग्यतारी,
गगनविपिनसिंहःतेजरूपोविहारी।।
विष्णु
जगदवनविधाताविश्वसौभाग्यदाता,
मदनरिपुसखायःभक्तसम्मानत्राता।
निजजनसुखरूपःभावसंदोहदीप्तः,
भवजलधिनियन्ता श्रीहरिःशंतनोतु।।
दुर्गा
सकलभुवनमध्येवंदनीयापराया,
सुरवरमुनिपूज्या कल्पवल्ली विधात्री।
सुजनसुमनशोभासर्वसौभाग्यमूला,
दनुजकुलनिहन्त्रीशाम्भवी नः पुनातु।। 

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